Lutate Janmat Ki Aawaz By Davinder Dhar
"लुटते जनमत की आवाज"
विधा : काव्य
द्वारा : देवेंद्र धर
बिंब प्रतिबिंब प्रकाशन द्वारा प्रकाशित
प्रथम संस्करण: 2025
मूल्य : 375.00
समीक्षा क्रमांक : 185
"जमीन तलाशते शब्द "(1992) और " सुबगते पन्नों पर बहस" (2023) के पश्चात अपने तीसरे काव्य संग्रह "लुटते जनमत की आवाज" के संग देवेन्द्र धर जी ने पुनः जनमानस को उद्वेलित कर देने वाली अपनी कविताओं की प्रस्तुति दी है। यथा पूर्व काव्य संग्रहों में भी देखा गया की देवेन्द्र जी आम जन के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपनी कविताओं में न सिर्फ स्वप्न सँजोये हुए है, एक जागृत सभ्य सुंदर समाज का तथा उन स्वप्नों को यथार्थ में लाने के अपने स्वप्नों को ही शब्द रूप में लाकर अपनी कविताओं के द्वारा एक जनचेतना जागृत करने का भरसक प्रयास करते हैं। उनकी कविता स्वप्न एवं वास्तविकता के बीच की कड़ी कही जा सकती है। संवेदनशील कवि हैं , जनमानस की मुश्किलात् से बखूबी वाकिफ हैं साथ ही अपनी ओर से उन सोयों को जगाने का प्रयास करते हैं जो व्यवस्था एवं अन्याय की चाटुकारिता करते हुए या तो स्वयं को उसमें ढाल चुके हैं अथवा सुप्तप्राय हैं, तो कहा जा सकता है की उनकी कविता उन्ही सुप्तप्राय जन को जगाने का प्रयास है। उनके अंदर का कवि हृदय, अव्यवस्था, अनाचार, अत्याचार, गिरते सांस्कृतिक मूल्य,परिवेश में चहुं ओर व्याप्त असुरक्षा की भावना और आती जाती सांस के साथ जूझती मानवता को आवाज देता है एवं वही आवाज है नवीनतम काव्य संग्रह "लुटते जनमत की आवाज" जो अपने शीर्षक से ही सब कुछ कह जाने में सक्षम है।
सामाजिक परिवर्तन की अभिलाषा उनकी कविताओं में अपनी संपूर्णता के संग सामने आती है।
उनकी कविताओं में राजनैतिक चाल बाजियों एवं हर उस बात से उनकी नफ़रत स्पष्टतः परिलक्षित होती है जो उनके स्वप्नों में भरे समाज के विरुद्ध है।
उपरोक्त कथनों के आधार पर यह धारणा कतई नहीं बना लेनी चाहिए की वे कोई क्रांतिकारी कवि है अथवा वीर रस एवं ओज की ही कविताएं लिखते हैं अपितु उनकी कविताओं में हमें वही भाव देखने को मिलता है जो एक आम आदनी के दिल में उन तमाम अव्यवस्थाओं के प्रति सदा सर्वदा बना रहता है किन्तु अपनी सीमाएं समझते हुए वह कभी मुखर होकर या तो सामने नहीं आ पाता अथवा सामाजिकता के बंधनों से जकड़ा हुआ कहना नहीं चाहता।
कविता “छुछूँदरों का सूचना तंत्र” और “बजरबट्टू” अत्यंत विचारपूर्ण एवं सत्य को उजागर करती और कवि के अंतर्मन के बवंडर को बहुत हद तक उजागर करती है, वहीं कविता “चुन लो न्याय या अन्याय” एक ऐसी कविता है जो स्वाभाविक रूप से सोतों में जोश पैदा कर सकती है।
उनकी कविताओं में एक उज्जवल भविष्य के प्रति एक उम्मीद झलकती है, कहें की वे आशावादी है तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी जैसा की हम देख पाते है "परतों में छिपा सत्य" में जब वे कहते हैं की
रात की कालिख को निगलेगा
सूर्य का उजियारा कभी
एक उम्मीद बनाए रखनी है
सब कुछ निकाल कर रख देगा
सूर्य सा परतों में छिपा सत्य
उजाले में नहीं दिखाई देता
असंभव अंधेरा
इसी उम्मीद की झलक एक संदेशात्मकता के संग कमोबेश हमें उनकी अन्य कविताओं में भी नजर आती है , कविता "अपने हिस्से की आग" में तो वे स्पष्ट कहते हैं की
अभी कुछ विकल्प बचे है
एक नया विकल्प बन सकता है
सामने सड़क भी और चौराहा भी है
बस चुन लो वो आग जिसे
बचा कर रख लिया है।
अभी समय है
भीख कभी न मांगना
अपने हिस्से की आग
संभाल कर रखना
रुकना नहीं ।।
अव्यवस्था और वर्तमान हालात का अत्यंत सांकेतिक चित्रण करते हैं अपनी कविता "खून का स्वाद" में, नश्तर हैं जो सटीक वार करते हैं, कहते हैं
भेड़ों में भी संभव नहीं होता
भेड़ की औकात पहचानना
इस भेड़चाल में इनकी पहचान मुश्किल है
ये शरीफ भेड़ें
अपनी सुगंध बिखेरती
भेड़ियों को निमंत्रण देती हुई निकल जाती हैं शहर से दूर
यह सब तब होता है
जब गड्डियों के वफादार कुत्ते
ऊंघ रहे होते हैं।
एक और कविता “ लोहार का लोहा” के भाव से कवि को कुछ और समझने में कुछ मदद मिलती है
लोहा कभी हथियार नहीं होता
लोहा जीत जागता सच है
एक लड़ाई लड़ने का
हथियार बनाने का एक आवहँ
जिसे सिर्फ लोहार ही तराशता है
कविता “ये कैसी आग है” की चंद पंक्तियाँ काबिले गौर हैं –
सुलग रहा है धार्मिक उन्माद
हरी हरी विचार धरा सुलग रही
मौत का नग्न नृत्य चल रहा।।
मौत के नग्न नृत्य का
आनंद ले रहा नपुंसक अग्निशमक यंत्र
सभ्यता रो रो कर गला फाड़ रही
अब सवाल आग का ही नहीं बचा
आग तो सब कुछ राख कर देगी ।।
वहीं कविता “परतों में पलती स्वतंत्रता” भी अत्यंत स्पष्ट शब्द चयन एवं कवि की सु ज्ञात शैली में वह सब जकुछ कह जाती है जो आम जन शायद सब जानते हुए भी कभी भी कह न पाए । और इस सब के साथ अंत प्रस्तुत है में कविता “सारे जहां से अच्छा” ।
समेकित भाव से देखें तो एक नयी सुबह कि उम्मीद कि आस में कुछ सपने संजोता कुछ उम्मीदों पर अपना विशवास जमाता कवि कि गंभीर किन्तु कहीं कहीं चेतावनी देती तो कहीं थोडा उग्र भाव लिए कविताओं का एक शानदार संग्रह है.
अतुल्य
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